Warning: include_once(/home/u140703092/domains/karmyoginews.com/public_html/wp-content/plugins/wp-super-cache/wp-cache-phase1.php): Failed to open stream: No such file or directory in /home/u459374497/domains/vishvasamachar.com/public_html/wp-content/advanced-cache.php on line 22

Warning: include_once(): Failed opening '/home/u140703092/domains/karmyoginews.com/public_html/wp-content/plugins/wp-super-cache/wp-cache-phase1.php' for inclusion (include_path='.:/opt/alt/php82/usr/share/pear:/opt/alt/php82/usr/share/php:/usr/share/pear:/usr/share/php') in /home/u459374497/domains/vishvasamachar.com/public_html/wp-content/advanced-cache.php on line 22
आग से खेलना चाहता है चीन, AI नियंत्रित परमाणु हथियारों पर रोक लगाने वाले समझौते से कटा, क्या है ड्रैगन की मंशा?… – vishvasamachar

आग से खेलना चाहता है चीन, AI नियंत्रित परमाणु हथियारों पर रोक लगाने वाले समझौते से कटा, क्या है ड्रैगन की मंशा?…

चीन ने हाल ही में सियोल में आयोजित ‘मिलिट्री डोमेन में जिम्मेदार एआई’ (REAIM) शिखर सम्मेलन में पेश किए गए ‘ब्लूप्रिंट फॉर एक्शन’ समझौते से खुद को अलग कर लिया है।

इस समझौते का उद्देश्य परमाणु हथियारों के नियंत्रण में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) के उपयोग को रोकना और इस मुद्दे पर मानव नियंत्रण बनाए रखना है।

चीन का इस महत्वपूर्ण वैश्विक समझौते से पीछे हटना, अंतरराष्ट्रीय समुदाय में कई सवाल खड़े करता है। चीन की मंशा को लेकर चिंताएं और आशंकाएं गहरी होती जा रही हैं, क्योंकि अन्य प्रमुख देश विशेष रूप से अमेरिका और यूरोप, इस मुद्दे पर एकजुट होकर आगे बढ़ रहे हैं।

दक्षिण कोरिया की राजधानी सियोल में आयोजित REAIM शिखर सम्मेलन में 100 से अधिक देशों ने हिस्सा लिया। सम्मेलन का उद्देश्य एआई के सैन्य उपयोग पर नियंत्रण और नैतिकता सुनिश्चित करना था।

इसमें ‘ब्लूप्रिंट फॉर एक्शन’ नामक एक समझौता प्रस्तावित किया गया, जिसका मुख्य बिंदु यह था कि एआई के उपयोग से परमाणु हथियारों के नियंत्रण पर कोई समझौता न हो और यह प्रक्रिया पूरी तरह मानव नियंत्रण में रहे। हालांकि, यह समझौता कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं था लेकिन नैतिक और सुरक्षा के दृष्टिकोण से बेहद महत्वपूर्ण था।

चीन की मंशा पर सवाल

चीन का इस समझौते से बाहर रहना एक चिंताजनक कदम माना जा रहा है, खासकर तब जब पूरी दुनिया एआई के खतरों और इसके सैन्य उपयोग से जुड़ी चुनौतियों पर चर्चा कर रही है। एआई को सैन्य क्षेत्र में एक ‘दो धारी तलवार’ माना जा रहा है, जिसका उपयोग सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के साथ-साथ इसके दुरुपयोग से विनाशकारी परिणाम हो सकते हैं।

दक्षिण कोरिया के रक्षा मंत्री किम योंग-ह्यून ने एआई के प्रभावों को लेकर चेताया भी और कहा कि जैसे-जैसे एआई का उपयोग बढ़ रहा है, यह सैन्य अभियानों की दक्षता को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके दुरुपयोग के बड़े खतरे भी हैं। ऐसे में चीन का इस समझौते से दूर रहना यह संकेत देता है कि वह एआई के सैन्य उपयोग के संभावित फायदों को नजरअंदाज नहीं करना चाहता।

क्या हो सकती है चीन की रणनीति

चीन ने कई बार यह साबित किया है कि वह आधुनिक तकनीकों में निवेश और सैन्य क्षमताओं को बढ़ाने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। वह एआई और अन्य अत्याधुनिक तकनीकों का उपयोग कर अपनी सैन्य क्षमताओं को तेजी से विकसित कर रहा है। इस संदर्भ में, एआई नियंत्रित परमाणु हथियार या अन्य सैन्य प्रणालियां चीन की रणनीतिक योजना का हिस्सा हो सकती हैं। चीन का इस समझौते से बाहर रहना यह संकेत देता है कि वह परमाणु हथियारों के नियंत्रण के लिए मानव नियंत्रण बनाए रखने की बजाय एआई का उपयोग करने की संभावना को खारिज नहीं कर रहा है। इसके अलावा, चीन यह भी देख रहा होगा कि एआई तकनीक में आगे रहने से उसे सैन्य और रणनीतिक लाभ मिल सकते हैं।

चीन की इस रणनीति से वैश्विक सुरक्षा पर गंभीर सवाल खड़े हो गए हैं। जबकि अमेरिका, यूरोपीय देश और अन्य वैश्विक शक्तियां एआई के संभावित खतरों को लेकर चिंतित हैं और इसे नैतिकता और सुरक्षा के साथ जोड़कर देख रही हैं, चीन का इस समझौते से दूर रहना उसे सैन्य शक्ति के क्षेत्र में अग्रणी बनने की दिशा में देखे जाने का संकेत है। एआई तकनीक के विस्तार और इसके सैन्य उपयोग के बढ़ते खतरे को देखते हुए, चीन की यह रणनीति वैश्विक सुरक्षा के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *