प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):
हिंदू धर्म में मंदिर या मांगलिक कार्यों के दौरान चंदन, रोली या सिंदूर से तिलक लगाया जाता है।
वहीं, महादेव के भक्त माथे पर त्रिपुंड तिलक लगाते हैं। सावन का महीना चल रहा है। भगवान भोलेनाथ के इस प्रिय महीने में शिवजी की पूजा-आराधना के दौरान त्रिपुंड तिलक लगाना का बड़ा महत्व है।
भगवान शिव के श्रृंगार में त्रिपुंड तिलक का एक विशेष महत्व है। अक्सर आपने भोलेनाथ की प्रतिमा और शिवलिंग पर तीन आड़ी रेखाएं देखी होंगी,जिसे सफेद चंदन या भस्म से लगाया जाता है।
इन्हीं आड़ी रेखाओं को त्रिपुंड तिलक कहा जाता है। आइए जानते हैं त्रिपुंड तिलक का महत्व और इसे लगाने का सही तरीका…
त्रिपुंड का महत्व : ज्योतिष में त्रिपुंड की 3 रेखाओं का बेहद शुभ मानी गई है। मान्यता है कि इनमें 27 देवताओं का वास होता है और एक रेखा में 9 देवता वास करते हैं।
इसलिए त्रिपुंड तिलक लगाने से जातक पर शिवजी के साथ 27 देवताओं का आशीर्वाद बना रहता है।
त्रिपुंड लगाने का सही तरीका :
भोलेनाथ को लाल चंदन, सफेद चंदन, अष्टगंध और भस्म का त्रिपुंड लगाया जाता है।त्रिपुंड लगाने के लिए सबसे पहले दाएं हाथ की मध्यमा उंगला और अनामिका उंगली से माथे पर ऊपर की ओर दो रेखा बनाएं।
इसके बाद तर्जनी उंगली से नीचे एक रेखा बना दें। त्रिपुण्ड ललाट से लेकर नेत्रपर्यन्त और मस्तक से लेकर भ्रकुटी तक लगाया जाता है।
त्रिपुंड की तीनों रेखाओं में इन देवताओं को होता है वास:
पहली रेखा : प्रणव का प्रथम अक्षर अकार, रजोगुण, पृथ्वी, धर्म,क्रियाशील,गार्हपत्य अग्नि, ऋग्वेद, क्रियाशक्ति,प्रात:कालीन हवन और महादेव।
दूसरी रेखा : सत्वगुण, आकाश, अन्तरात्मा, इच्छाशक्ति,दक्षिणाग्नि, प्रणव का दूसरा अक्षर उकार, यजुर्वेद, मध्याह्न के हवन और महेश्वर
तीसरी रेखा : आहवनीय अग्नि, प्रणव का तीसरा अक्षर मकार, तमोगुण, स्वर्गलोक, परमात्मा, ज्ञानशक्ति, सामवेद, तीसरे हवन और शिव