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न्याय और समानता है कोर्ट की बुनियाद, तीन अदालत परिसरों की नींव रख बोले CJI चंद्रचूड़… – vishvasamachar

न्याय और समानता है कोर्ट की बुनियाद, तीन अदालत परिसरों की नींव रख बोले CJI चंद्रचूड़…

दिल्ली में तीन अदालत परिसरों के शिलान्यास के मौके पर सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि कोर्ट की इमारत केवल ईंट और पत्थर से नहीं बल्कि लोगों की उम्मीदों पर बनी होती है।

उन्होंने कहा, अदालतें लोगों को कानून के शासन का अहसास कराने के लिए बनाई गई हैं। जब हम लोग वकीलों, जजों और याचिकाकर्ताओं की सुरक्षा के लिए काम करते हैं तो एक समावेशी व्यवस्था बनती है।

ऐसे में अपनी जिम्मेदारी का अहसास होना सबसे जरूरी है।  

सीजेआई ने कहा कि 1993 में कड़कड़डूमा कोर्ट की स्थापना के बाद कई अदालत परिसरों के विस्तार और अतिरिक्त परिसरों का काम पूरा किया गया है।

नए अदालत परिसरों से कोर्ट की क्षमता  बढ़ती है और निर्भरता कम होती है। उन्होंने कहा कि अदालतों में कानूनी सिद्धातों पर कड़ी चर्चा होती है बहस के जरिए सही गलत का फैसला किया जाता है।

जज बहुत ही सावधानी से विचार विमर्श करके तर्कों के आधार पर निष्पक्ष निर्णय पर पहुंचते हैं। इसके आधार पर गहन और संतुलित जांच भी सुनिश्चित हो पाती है। 

सीजेआई ने कहा कि जिस तरह से किसी इमारत की नींव के लिए ईंटों की जरूरत होती है उसी तरह से अदालतें न्याय और समानता की बुनियाद पर खड़ी होती हैं।

हमारी कानूनी और संवैधानिक प्रणाली मूल रूप से न्याय, स्वतंत्रता, समानता और भाईचारे के गुणों पर आधारित है। बता दें कि सीजेआई दिल्ली में तीन अदालत परिसरों की आधारशिला रख रहे थे। उन्होंने कहा, “आज हमने 3 अदालतों की आधारशिला रखी है… यह आधारशिला समारोह दिल्ली के नागरिकों और अन्य लोगों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, जो न्याय की तलाश में यहां आएंगे… मुझे उम्मीद है कि यह परियोजना तय समय पर पूरी हो जाएगी, ताकि सभी वादियों को बहुत जरूरी सुविधाएं मिल सकें। सबसे बढ़कर, हमें वादियों को ध्यान में रखना होगा और उनके हितों की सेवा करनी होगी।” उन्होंने  शास्त्री पार्क और रोहिणी सेक्टर 26 में अदालत परिसरों की आधारशिला रखी है। +

बता दें कि हाल ही में सीजेआई चंद्रचूड़ ने कोर्ट को मंदिर और जजों  को भगवान मानने पर आपत्ति जाहिर की थी। उन्होंने कहा था कि यह प्रवृत्ति खतरनाक है।

जज का काम भी सेवा करना है। उन्होंने कहा था कि कुछ लोग कोर्ट को न्याय का मंदिर कहते हैं। यह खतरे की बात है। हम खुद को उन मंदिरों में देवाताओं के रूप में देखने लगते हैं, जो कि ठीक नहीं है। 

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