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चीन को याद आने लगे भारत के पंचशील सिद्धांत, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कह दी बड़ी बात… – vishvasamachar

चीन को याद आने लगे भारत के पंचशील सिद्धांत, राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कह दी बड़ी बात…

चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने मौजूदा समय के संघर्षों के अंत को लेकर पंचशील सिद्धांतों का जिक्र किया है।

उन्होंने पश्चिमी देशों के साथ बीजिंग के संघर्षों के बीच ग्लोबल साउथ में अपने देश का प्रभाव बढ़ाने पर जोर दिया। शी ने पंचशील के सिद्धांतों की स्थापना की 70वीं वर्षगांठ के अवसर पर एक सम्मेलन में यह टिप्पणियां कीं।

शी जिनपिंग ने कहा, ‘शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के पांच सिद्धांतों ने समय की मांग को पूरा किया। इनकी शुरुआत ऐतिहासिक घटनाक्रम का हिस्सा रहा। अतीत में चीनी नेतृत्व पहली बार 5 सिद्धांतों को अपनाने की ओर बढ़ा।’ 

शी जिनपिंग ने सम्मेलन में कहा, ‘उन्होंने चीन-भारत और चीन-म्यांमार संयुक्त वक्तव्यों में 5 सिद्धांतों को शामिल किया था। इन वक्तव्यों में पांच सिद्धांतों को द्विपक्षीय संबंधों के लिए बुनियादी मानदंड बनाने का आह्वान किया गया था।’

इस सम्मेलन में श्रीलंका के पूर्व राष्ट्रपति महिंदा राजपक्षे समेत चीन के करीबी देशों के नेता और अधिकारी शरीक हुए। शी ने अपने संबोधन में कहा कि शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के पांच सिद्धांतों की शुरुआत एशिया में हुई, लेकिन जल्द ही ये विश्व मंच पर छा गए।

उन्होंने कहा कि 1955 में बांडुंग सम्मेलन में 20 से अधिक एशियाई और अफ्रीकी देशों ने भाग लिया था। 1960 के दशक में उभरे गुटनिरपेक्ष आंदोलन ने भी इन सिद्धांतों को मार्गदर्शक सिद्धांत के तौर पर अपनाया।

पंचशील सिद्धांत क्या हैं? 
विदेश मंत्रालय के अनुसार, पंचशील के सिद्धांतों को पहली बार औपचारिक रूप से 29 अप्रैल, 1954 को अपनाया गया था। तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार व संबंध को लेकर इसे चीन और भारत के बीच हुए समझौते में शामिल किया गया था।

चीन में इसे शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के 5 सिद्धांत जबकि भारत में पंचशील का सिद्धांत कहा जाता है।

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और चीन के प्रधानमंत्री चाऊ एनलाई जब सीमा मुद्दे का समाधान खोजने में विफल रहे थे, तब उन्होंने पंचशील के सिद्धांतों पर सहमति जताई थी।

ये पांच सिद्धांत इस प्रकार हैं- एक-दूसरे की संप्रभुता व क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान, गैर-आक्रामकता, एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना, समानता व पारस्परिक लाभ और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व।

अमेरिका और यूरोपीय संघ से रणनीतिक प्रतिस्पर्धा बढ़ रही है। इसका सामना करते हुए हाल के वर्षों में एशियाई, अफ्रीकी और लातिन अमेरिकी देशों में चीन अपना प्रभाव बढ़ाने की जुगत में लगा है। इस बीच, बीजिंग का भारत और अन्य विकासशील देशों के साथ संघर्ष हुआ है।

इन देशों को मोटे तौर पर ‘ग्लोबल साउथ’ कहा जाता है। चीनी राष्ट्रपति शी ने कहा कि चीन ग्लोबल साउथ-साउथ सहयोग को बेहतर ढंग से समर्थन देने के लिए ग्लोबल साउथ अनुसंधान केंद्र की स्थापना करेगा।

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