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कब है निर्जला एकादशी व्रत, पजा विधि और व्रत कथा यहैं… – vishvasamachar

कब है निर्जला एकादशी व्रत, पजा विधि और व्रत कथा यहैं…

प्रियंका प्रसाद (ज्योतिष सलाहकार):

ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी  कहते हैं।

एकादशीतिथि भगवान विष्णु की पूजा के लिए समर्पित है। सारी एकादशी एक तरफ और निर्एजला एकादशी एक तरफ। आपको बता दें कि निर्जला एकादशी का व्रत बहुत पुण्य देने वाला होता है।

इस व्रत की बहुत महिमा है। कहा जाता है कि सभी एकादशी व्रत का पुण्य यह निर्जला एकादशी व्रत दे देता है। 

मान्यता है पांडव भाइयों में से भीम ने ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को बगैर जल ग्रहण किए एकादशी का व्रत किया था। इस साल निर्जला एकादशी व्रत जून में 17 या 18 तारीख को है। दरअसल इस व्रत की तारीख में कंफ्यूजन है। 

कब है निर्जला एकादशी व्रत
पंचांग के अनुसार ज्येष्ठ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी की तिथि 17 जून को प्रात: 4 बजकर 43 मिनट से शुरू हो जाएगी और अगले दिन 18 जून को सुबह 6 बजकर 24 मिनट तक रहेगी।

निर्जला एकादशी का व्रत 18 जून मंगलवार को रखा जाएगा। ऐसे में उदया तिथि के अनुसार 18 जून को निर्जला एकादशी माना जाएगा, कहा जाता है कि दशमी युक्त एकादशी नहीं रखी जाती है।

कहा जाता है भीमसेन एकादशी
महाबली भीम द्वारा निर्जला एकादशी का व्रत रहने से इसे भीमसेन एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। यह व्रत सभी एकादशियों में सबसे कठिन माना गया है क्योंकि इस दिन बगैर पानी पिए व्रत रहने की परंपरा है। 

निर्जला एकादशी व्रत कथा-
प्राचीन काल की बात है एक बार भीम ने वेद व्यास जी से कहा कि उनकी माता और सभी भाई एकादशी व्रत रखने का सुझाव देते हैं, लेकिन उनके लिए कहां संभव है कि वह पूजा-पाठ कर सकें, व्रत में भूखा भी नहीं रह सकते।

इस पर वेदव्यास जी ने कहा कि भीम, अगर तुम नरक और स्वर्ग लोक के बारे में जानते हो, तो हर माह को आने वाली एकादश के दिन अन्न मत ग्रहण करो।

तब भीम ने कहा कि पूरे वर्ष में कोई एक व्रत नहीं रहा जा सकता है क्या? हर माह व्रत करना संभव नहीं है क्योंकि उन्हें भूख बहुत लगती है।

भीम ने वेदव्यास जी से निवेदन किया कोई ऐसा व्रत हो, जो पूरे एक साल में एक ही दिन रहना हो और उससे स्वर्ग की प्राप्ति हो जाए।  तब व्यास जी ने भीम को ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के बारे में बताया।

निर्जला एकादशी व्रत में अन्न व जल ग्रहण करने की मनाही होती है। द्वादशी को सूर्योदय के बाद स्नान करके ब्राह्मणों को दान देना चाहिए और भोजन कराना चाहिए फिर स्वयं व्रत पारण करना चाहिए। इस व्रत को करने व्यक्ति को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति होती है।

वेद व्यास जी की बातों को सुनने के बाद भीमसेन निर्जला एकादशी व्रत के लिए राजी हो गए। उन्होंने निर्जला एकादशी व्रत किया। इसलिए इसे भीमसेनी एकादशी या पांडव एकादशी कहा जाने लगा।

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