Warning: include_once(/home/u140703092/domains/karmyoginews.com/public_html/wp-content/plugins/wp-super-cache/wp-cache-phase1.php): Failed to open stream: No such file or directory in /home/u459374497/domains/vishvasamachar.com/public_html/wp-content/advanced-cache.php on line 22

Warning: include_once(): Failed opening '/home/u140703092/domains/karmyoginews.com/public_html/wp-content/plugins/wp-super-cache/wp-cache-phase1.php' for inclusion (include_path='.:/opt/alt/php82/usr/share/pear:/opt/alt/php82/usr/share/php:/usr/share/pear:/usr/share/php') in /home/u459374497/domains/vishvasamachar.com/public_html/wp-content/advanced-cache.php on line 22
अब शिक्षा में भी संप्रदाय के आधार पर लकीरें खिंचने लगीं: कर्नाटक में मुस्लिम संगठनों ने कॉलेज खोलने का दिया आवेदन… – vishvasamachar

अब शिक्षा में भी संप्रदाय के आधार पर लकीरें खिंचने लगीं: कर्नाटक में मुस्लिम संगठनों ने कॉलेज खोलने का दिया आवेदन…

जीवन में जो कुछ भी हम बनते हैं, या नहीं बन पाते हैं इसके मूल में हमारी शिक्षा ही होती है।

चाहे वह शिक्षा हमें माता-पिता से मिले, बड़े-बूढ़ों से मिले या स्कूल-कॉलेज में मिले। जीवन की रोशनी हर हाल में शिक्षा ही है।

लेकिन देश में अब शिक्षा में भी धर्म के आधार पर लकीर खिंचती दिखाई दे रही है। कर्नाटक में हाल ही में कुछ मुस्लिम संगठनों ने दर्जनभर से ज्यादा निजी कॉलेज खोलने के आवेदन दिए हैं। इन संगठनों का कहना है कि ये वे कॉलेज होंगे जहां हिजाब पर प्रतिबंध नहीं होगा।

सबको पता ही है कि कर्नाटक के सरकारी कॉलेजों में हिजाब पर प्रतिबंध है और इस प्रतिबंध को वापस लेने की अर्जी सुप्रीम कोर्ट भी खारिज कर चुका है। ऐसे में संप्रदाय विशेष के निजी कॉलेज खुलते हैं तो जाहिर है इनमें पढ़ने वाले ज्यादातर बच्चे भी इसी संप्रदाय के होंगे!

दूसरे संप्रदाय के लोग तो इन कॉलेजों में अपने बच्चों को पढ़ने भेजेंगे, ऐसा नहीं लगता। शिक्षा का भी इस तरह संप्रदाय के आधार पर विभाजन हो गया तो आगे क्या होगा? … और फिर क्या इस तरह की विभाजन रेखाएं यहीं थम पाएंगी?

हो सकता है ये लकीरें आगे चलकर मॉल, किराना दुकान, होटलों और रेस्त्रां तक पहुंच जाए। आखिर ये लकीरें हमें कहां तक ले जा सकती हैं, इसका अंदाजा सहजता से लगाया जा सकता है। लोगों को, सरकारों को और प्रशासन को तुरंत इस बारे में समरसता के बीज बोने शुरू कर देना चाहिए।

बिना सौहार्द और समरसता के ये लकीरें रुकने वाली नहीं हैं। किसी भी संप्रदाय की कोई भी आपत्ति हो सकती है। जिद भी हो सकती है। लेकिन कोई आपत्ति, कोई जिद, ऐसी नहीं होती जिसका कोई हल न हो, कोई समाधान ही नहीं हो!

अगर हर मोर्चे पर प्रयास किए जाएं तो निश्चित ही सौहार्द और समरसता की फसल का आनंद पूरा देश उठा सकता है। शर्त सिर्फ यह होनी चाहिए कि प्रयास सच्चे हों। कोशिशें ईमानदार हों। बंटता समाज कभी देश हित में नहीं हो सकता।

हो सकता है राजनीति के चतुर खिलाड़ियों चाहे वे किसी भी कौम के हों, उन्हें ये लकीरें आत्मीय सुख देती हों, लेकिन आने वाली पीढ़ी के लिए यह सर्वथा अनुचित है। पीढ़ियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए सौहार्द के बीज बोने ही होंगे। हर स्तर पर।

गांव, गली, कस्बों, शहर और महानगरों तक जब समरसता का संदेश हम फैलाएंगे तो निश्चित ही उसके दूरगामी सुपरिणाम मिलेंगे ही। आखिर सबकुछ तो हमने बांट ही लिया है, अब अगर शिक्षा का भी बंटवारा हो गया तो देश, समाज का क्या होगा?

कम से कम अब तो यह विचार करना ही चाहिए कि इतना बड़ा लोकतंत्र हमारे लिए सिर्फ वोट कबाड़ने का तंत्र और कुर्सियां हथियाने का मंत्र बनकर न रह जाए। थोपी हुई नैतिकता की बेड़ियों के जरिए अलग-अलग संप्रदायों को सत्ता की अलग-अलग खूंटियों से न बांधा जाए। कम से कम अब तो वह बौद्धिक कवायद शुरू होनी ही चाहिए जिसकी इस राष्ट्र की राजनीति को सख्त जरूरत है।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *