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श्री रामलला मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन पढ़ें भगवान श्री राम की ये स्तुति, भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी… – vishvasamachar

श्री रामलला मंदिर प्राण प्रतिष्ठा के दिन पढ़ें भगवान श्री राम की ये स्तुति, भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी…

प्रवीण नांगिया (ज्योतिष सलाहकार):

श्री रामलला नगरी अयोध्या में उत्सवी माहौल है।

500 साल की लंबे संघर्ष, त्याग व तपस्या के बाद धूम-धाम से भगवान श्रीराम लला की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को गर्भ गृह में की जाएगी।

इससे करोड़ों सनातनियों में खुशी की लहर है। श्रीराम लला मंदिर का पूजित अक्षत लोगों के घर-घर पहुंचाया जा रहा है। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा के वक्त गर्भगृह में कुल 121 पुजारी उपस्थित रहेंगे।

हिंदू धर्म परंपरा में प्राण प्रतिष्ठा एक पवित्र अनुष्ठान है, जो किसी मूर्ति या प्रतिमा में उस देवता या देवी का आह्वान कर उसे पवित्र या दिव्य बनाने के लिए किया जाता है।

‘प्राण’ शब्द का अर्थ है जीवन जबकि प्रतिष्ठा का अर्थ है ‘स्थापना। ऐसे में प्राण प्रतिष्ठा का अर्थ है ‘प्राण शक्ति की स्थापना’ या ‘देवता को जीवंत स्थापित करना।’

भव्य राम मंदिर में भी रामलला की प्रतिमा की प्राण प्रतिष्ठा की जानी है। देशभर में इस पावन दिन विशेष पूजा-अर्चना की जाएगी। इस पावन दिन भगवान श्री राम की स्तुति जरूर करें-

भए प्रगट कृपाला श्रीराम स्तुति-

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥

लोचन अभिरामा, तनु घनस्यामा, निज आयुध भुजचारी।
भूषन बनमाला, नयन बिसाला, सोभा सिंधु खरारी॥

कह दुइ कर जोरी, अस्तुति तोरी, केहि बिधि करूं अनंता।
माया गुन ग्यानातीत अमाना, वेद पुरान भनंता॥

करुना सुख सागर, सब गुन आगर, जेहि गावहिं श्रुति संता।
सो मम हित लागी, जन अनुरागी, भयउ प्रगट श्रीकंता॥

ब्रह्मांड निकाया, निर्मित माया, रोम रोम प्रति बेद कहै।
मम उर सो बासी, यह उपहासी, सुनत धीर मति थिर न रहै॥

उपजा जब ग्याना, प्रभु मुसुकाना, चरित बहुत बिधि कीन्ह चहै।
कहि कथा सुहाई, मातु बुझाई, जेहि प्रकार सुत प्रेम लहै॥

माता पुनि बोली, सो मति डोली, तजहु तात यह रूपा।
कीजै सिसुलीला, अति प्रियसीला, यह सुख परम अनूपा॥

सुनि बचन सुजाना, रोदन ठाना, होइ बालक सुरभूपा।
यह चरित जे गावहिं, हरिपद पावहिं, ते न परहिं भवकूपा॥

भए प्रगट कृपाला, दीनदयाला, कौसल्या हितकारी।
हरषित महतारी, मुनि मन हारी, अद्भुत रूप बिचारी॥

श्रीरामचंद्र भगवान की जय, सिया वर रामचंद्र की जय।।

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