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देश के लिए नए संविधान की मांग कर विवादों में घिरे, जानिए कौन हैं बिबेक देबरॉय… – vishvasamachar

देश के लिए नए संविधान की मांग कर विवादों में घिरे, जानिए कौन हैं बिबेक देबरॉय…

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (पीएम ईएसी) के चेयरमैन बिबेक देबरॉय विवादों में घिर गए हैं।

इस विवाद की जड़ है देबरॉय का वह लेख जिसमें उन्होंने देश के लिए नए संविधान की मांग की है। उनका यह लेख सोमवार को प्रकाशित हुआ था।

इस लेख में बिबेक देबरॉय ने मौजूदा संविधान को खत्म करने का आह्वान करते हुए कहा कि यह औपनिवेशिक विरासत को अपने साथ लाया है।

उनकी इस टिप्पणी की कई विपक्षी दलों ने आलोचना की और कहा कि संविधान देश के अरबों लोगों के अधिकारों की गारंटी देता है।

कुछ नेताओं ने उनके बयानों के जवाब में उनके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का भी आह्वान किया। उधर पीएम की आर्थिक सलाहकार परिषद ने देबरॉय के विचारों को निजी बताते हुए खुद को इससे दूर कर लिया। आइए जानते हैं आखिर कौंन है बिबेक देबरॉय…

नीति आयोग के रहे हैं सदस्य
68 साल के बिबेक देबरॉय ने साल 2017 में आर्थिक सलाहकार परिषद के प्रमुख की भूमिका संभाली। इसे पहले जब पांच सदस्यीय पैनल का गठन हुआ था तो वह नीति आयोग के सदस्य थे। उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज, कलकत्ता, गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ फॉरेन ट्रेड और नेशनल काउंसिल ऑफ अप्लाइड इकोनॉमिक रिसर्च सहित कई संस्थानों में पढ़ाया है। वह कई सम्मानित संस्थाओं का हिस्सा रहे हैं। पीएम-ईएसी वेबसाइट के अनुसार उन्होंने पश्चिम बंगाल के नरेंद्रपुर के रामकृष्ण मिशन स्कूल में पढ़ाई की। इसके अलावा प्रेसीडेंसी कॉलेज, कोलकाता, दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स और ट्रिनिटी कॉलेज (कैम्ब्रिज) में पढ़ाई की है।

निभा चुके हैं यह भूमिकाएं
इससे पहले भी देबरॉय विभिन्न सरकारी पैनलों के सदस्य रह चुके हैं। उन्होंने वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के लिए कंसल्टेंसी की भूमिका निभाई थी। वह पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के महासचिव भी रहे हैं। उनके पिछले पदों में राजीव गांधी फाउंडेशन में राजीव गांधी इंस्टीट्यूट फॉर कंटेम्पररी स्टडीज के निदेशक के रूप में भी कार्य करना शामिल है। देबरॉय ने कई किताबें, पेपर्स, मशहूर लेख भी लिखे हैं। इसके अलावा वह देश के नामी आर्थिक अखबारों में भी लगातार छपते रहे हैं। उन्होंने भारतीय रेलवे के पुनर्गठन पर समिति की भी अध्यक्षता की, जिसने रेल बजट खत्म करने की सिफारिश की थी। रिपोर्ट की सिफारिशों पर कार्रवाई करते हुए, केंद्र सरकार ने वर्ष 2017-18 से रेल बजट को आम बजट के साथ विलय कर दिया।

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