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चीन के ‘दुश्मनों’ का मददगार बना भारत, इस कदम से बढ़ेगी ड्रैगन की टेंशन… – vishvasamachar

चीन के ‘दुश्मनों’ का मददगार बना भारत, इस कदम से बढ़ेगी ड्रैगन की टेंशन…

इंडो-पैसिफिक क्षेत्र में बिग ब्रदर की छवि को लेकर चीन हमेशा से चिंतित रहा है।

इस क्षेत्र में भारत के बढ़ते कदम से ड्रैगन की टेंशन बढ़ने वाली है।

भारत ने चीन के साथ लंबे समय से क्षेत्रीय विवाद में शामिल दक्षिण पूर्व एशियाई देश वियतनाम और पापुआ न्यू गिनी के साथ राणनीतिक संबंध स्थापित करने के लिए कदम आगे बढ़ा दिया है।

भारत ने एक सक्रिय ड्यूटी मिसाइल कार्वेट वियनतान को उपहार में दिया है। इसके अलावा सशस्त्र बलों के बीच सैन्य सर्कुलेशन को बढ़ाने के उद्देश्य से ऑस्ट्रेलिया के कोकोस कीलिंग द्वीप समूह में दो सैन्य जहाज भेजे हैं।

जाहिर भारत के इस रुख से चीन की बौखलाहट बढ़ने वाली है।

उधर पापुआ न्यू गिनी में राजनयिक हलकों को आश्चर्य तब हुआ जब 3 अगस्त को पोर्ट मोरेस्बी में बहुउद्देशीय युद्धपोत आईएनएस सह्याद्री और निर्देशित मिसाइल विध्वंसक आईएनएस कोलकाता पर आयोजित एक स्वागत समारोह में प्रधानमंत्री जेम्स मारापे और लगभग पूरी कैबिनेट ने भाग लिया।

लोगों ने कहा कि अन्य विदेशी युद्धपोतों पर इसी तरह के स्वागत समारोहों में आमतौर पर केवल रक्षा मंत्री या अन्य अधिकारी ही शामिल होते थे। यह कदम इंडो-पैसिफिक द्वीप सहयोग मंच (एफआईपीआईसी) के शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के बाद उठाया गया।

यह पहली बार था जब भारत ने किसी मित्र देश को अपने हथियारों से लैस साथ पूरी तरह से परिचालन युद्धपोत प्रदान किया। बता दें इन देशों की समुद्री सेनाएं बार-बार दक्षिण चीन सागर में चीनी जहाजों के साथ आमने-सामने होती रही हैं।

भारतीय सेना के अधिकारियों ने उम्मीद जताई कि वियतनाम नौसेना युद्धपोत का उपयोग अपने राष्ट्रीय समुद्री हितों की रक्षा करने, क्षेत्रीय सुरक्षा में योगदान करने और शांति और स्थिरता को बढ़ावा देने के लिए करेगी।

इंडो पैसिफिक देशों के सामरिक महत्व को बढ़ावा देने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस साल मई में पापुआ न्यू गिनी की यात्रा की।

यह पहला मौका था जब किसी भारतीय प्रधानमंत्री ने इस देश की यात्रा की थी। प्रधानमंत्री मोदी 21 मई को पापुआ न्यू गिनी पहुंचे थे।

पीएम मोदी ने हिंद-प्रशांत द्वीपीय सहयोग मंच (FIPIC) के तीसरे शिखर सम्मेलन में हिस्सा लिया। भारतीय प्रधानमंत्री की ओर से ये कदम इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत की उपस्थिति को बढ़ाने और प्रभावी बनाने के लिए लिहाज से एक बड़ा कूटनीतिक कदम था।

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