Warning: include_once(/home/u140703092/domains/karmyoginews.com/public_html/wp-content/plugins/wp-super-cache/wp-cache-phase1.php): Failed to open stream: No such file or directory in /home/u459374497/domains/vishvasamachar.com/public_html/wp-content/advanced-cache.php on line 22

Warning: include_once(): Failed opening '/home/u140703092/domains/karmyoginews.com/public_html/wp-content/plugins/wp-super-cache/wp-cache-phase1.php' for inclusion (include_path='.:/opt/alt/php82/usr/share/pear:/opt/alt/php82/usr/share/php:/usr/share/pear:/usr/share/php') in /home/u459374497/domains/vishvasamachar.com/public_html/wp-content/advanced-cache.php on line 22
54 साल पहले चांद पर पहुंचा था इंसान, क्यों NASA के मून मिशन पर आज भी खड़े हैं सवाल?… – vishvasamachar

54 साल पहले चांद पर पहुंचा था इंसान, क्यों NASA के मून मिशन पर आज भी खड़े हैं सवाल?…

अमेरिका की स्पेस एजेंसी नासा ने आज के ही दिन यानी 20 जुलाई 1969 को चांद पर कदम रखकर इतिहास रच दिया था। नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन सबसे आज से 54 साल पहले चांद पर उतरे थे।

1958 में नासा का गठन हुआ था और इसके 11 साल बाद ही स्पेस एजेंसी ने बड़ी सफलता हासिल कर ली थी। लेकिन गौरक करने वाली बात यह है कि वह वक्त रूस और अमेरिका के बीच शीत युद्ध का था।

दोनों ही देश खुद को अंतरिक्ष समेत अन्य क्षेत्रों में श्रेष्ठ साबित करने में लगे थे। आज भी नासा के अपोलो मिशन को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जाते हैं।

बाकी लोगों को छोड़ दीजिए तो एक सर्वे में केवल अमेरिका के 30 फीसदी लोगों ने इस मिशन को झूठा बता दिया था।

रूस की रोसकोमोज स्पेस एजेंसी के पूर्व चीफ ने भी दावा किया था कि अमेरिका ने कभी चांद पर कदम नहीं रखा। वह केवल झूठ बोलता  रहा है।

बता दें कि सोवियत संघ के स्पेसक्राफ्ट लूना-9 1966 में ही चांद पर उतर चुका था।

अमेरिका और सोवियत संघ के बीच स्पेस वार जारी था। 1966 में ही अमेरिका ने भी अपना स्पेसक्राफ्ट चांद पर भेज दिया।

इसके बाद 16 जुलाी को अपोलो-11 से नील आर्मस्ट्रॉन्ग और बज एल्ड्रिन और साथ में माइकल कॉलिन्स को चांद के सफर पर भेज दिया गया।

दावा किया जाता है कि मात्र 76 घंटे में ही यह स्पेसक्राफ्ट चांद की कक्षा में पहुंच चुका था। इसके बाद 20 जुलाई की शाम नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने संदेश दिया की वह चांद पर कदम रख चुके हैं।

ढाई घंटे रहने के बाद वह फिर वापसी के सफर पर निकल पड़े। 11 दिन और आठ घंटे में यह मिशन पूरा हो गया।

1976 में अमेरिकी नौसेना के ही पूर्व अधिकारी ने नासा के मिशन का ह हिस्सा रहे बिल केसिंग की किताब का प्रकाशन किया था जिसका नाम था, ‘वी नेवर वेंट टू द मून- अमेरिकाज थर्टी बिलियन डॉलर स्विंडल।’

इस किताब में ऐसे कई तर्क दिए गए थे जिससे मून मिशन को झूठा साबित किया जा रहा था। हालांकि फिर उनके विरोध में भी कई लोग उतरे और उन्होंने उनके दावों के खिलाफ लिखा।

क्या हैं अपोलो मिशन को झूठा ठहराने के पीछे के तर्क
नील आर्मस्ट्रॉन्ग ने चांद पर अमेरिका का झंडा लहराया था। तस्वीरों में देखा गया कि झंडा फहरा रहा है। ऐसे में सवाल यह उठा कि जब चांद पर वायुमंडल नहीं है तो आखिर झंडा लहरा कैसे रहा है।

इसके अलावा चांद पर अंतरिक्षयात्रियों के पैरों के निशान की भी तस्वीर सामने आई। तर्क दिया गया कि चांद पर नमी नहीं है इसलिए इस तरह से पैरों के निशान नहीं पड़ सकते।

चांद की तस्वीरों में आकाश एकदम काला दिखाया गया था। वहां कोई तारा नहीं था। कहा जाता है कि चांद पर वायुमंडल नहीं है ऐसे में तारे और भी स्पष्ट नजर आने चाहिए थे।

इसके अलावा अंतरिक्ष यात्रियों की परछाई को लेकर कहा गया कि चांद पर रौशनी नहीं है तो फि परछाई कैसे दिखी। अगर यह सूर्य की रोशनी की वजह से भी थी तो सभी परछाई एक ही दिशा में होनी चाहिए थी।

थ्योरी यह भी है कि पृथ्वी की रेडिएशन बेल्ट को पार करना बहुत मुश्किल है।

क्या फिल्म था नासा का अपोलो मिशन? 
यह भी दावा किया जाता है कि अपोलो मिशन मात्र एक फिल्म की तरह था जिसे एरिया 51 में हॉलिवु़ड डायरेक्टर स्टैनले क्यूब्रेक ने फिल्माया था।

अपोलो मिशन से एक साल पहले ही उन्होंने एक फिल्म बनाई थी जिसमें अंतरिक्ष और चांद से संबंधित दृश्य दिखाए गए थे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

nagatop

nagatop

kingbet188

slot gacor

SUKAWIN88